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Monday 7 May 2012

अनुभव कथन : भारतीवीरा शिंदे




बापू तेरी महिमा शब्दों में कैसे बयां करुं.... 

 - भारतीवीरा शिंदे, अप्रैल-मे-जून २०१२, पृष्ठ क्रमांक ४

प्रारब्ध के भोग हर एक को अकेले ही भोगने पडते है । कोई रिश्तेदार हो या मित्र हो, ‘परिक्षा कक्ष में’, ‘ऑपरेशन टेबल पर’, ‘मौत से झूझते समय’, ‘कठिण समय मैं’ भौतिक स्तर पर कोई भी साथ नहीं देता । साथ होता है ‘अपना सद्‍गुरू’, ‘अपना संगी - साथी’, जिसका वचन है ’ मैं तुम्हारा कभी भी त्याग नहीं करूंगा’ । जो जनम से पहले और मृत्यू के बाद भी हम पर असीम प्रेम करता है, वास्तव मै ‘वो’ ही हमारा अपना होता है ।

भुसावल रहनेवाली भारतीवीरा शिंदे का कमरदर्द बिना ऑपरेशन से कैसे ठिक हुआ, यह पढने के लिए आजही अपने ‘कृपसिंधू’ मासिक की प्रत बचाकर रखें ।  वार्षिक सभासद नोंदणी फार्म के लिए यहा क्लिक करे |

। हरि ॐ ।

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